Electricity Wrong Bill: भोपाल के एक आम उपभोक्ता ने विद्युत कंपनी की मनमानी के खिलाफ उपभोक्ता आयोग में शिकायत दर्ज कर न्याय की मिसाल पेश की है. इस केस में आयोग ने भोपाल विद्युत वितरण कंपनी को 42,872 रुपये का बिल रद्द करने और उपभोक्ता को ₹10,000 मानसिक क्षतिपूर्ति देने का आदेश दिया है.
₹42,872 का बिल देख उड़े होश
करोंद निवासी गिरजा सक्सेना ने 2017 में बिजली का संयोजन लिया था और 2019 तक उनका मासिक बिल ₹100-₹150 के बीच आता था. जिसका वे नियमित भुगतान करते रहे. लेकिन अगस्त 2019 में अचानक ₹7,026 का बिल भेजा गया. शिकायत पर कोई सुनवाई नहीं हुई. बल्कि सितंबर में फिर ₹7,019 का बिल आया.
अक्टूबर में आया ₹42,872 का बड़ा बिल
उपभोक्ता की बार-बार की शिकायतों को अनदेखा कर कंपनी ने अक्टूबर 2019 में ₹42,872 का बिल थमा दिया. जब उपभोक्ता ने उच्च स्तर पर शिकायत की, तो कंपनी ने मीटर चेक करने के नाम पर नया मीटर लगा दिया. इसके बाद बिल ₹200 से ₹300 के बीच आने लगा. लेकिन कंपनी ने पुराने बढ़े बिल को समायोजित करने से मना कर दिया.
कंपनी का दावा
बिजली कंपनी ने उपभोक्ता पर 4467 यूनिट बिजली की खपत का आरोप लगाया और कहा कि मीटर को टेस्टिंग लैब भेजा गया था. जहां वह सही पाया गया. इसी आधार पर कंपनी ₹42,872 की वसूली पर अड़ी रही. हालांकि आयोग ने इसे अनुचित और अनुचित तर्क बताया.
आयोग ने कहा
आयोग ने कहा कि एक ऐसा उपभोक्ता जिसका मासिक बिल ₹100 से ₹150 आता है. उससे एकदम से 4000 से अधिक यूनिट की खपत की उम्मीद करना अव्यवहारिक है. आयोग ने माना कि कंपनी ने शिकायत की सुनवाई न करके उपभोक्ता के साथ अन्याय किया.
बिल रद्द, औसत के आधार पर वसूली और मुआवजा का आदेश
भोपाल उपभोक्ता आयोग ने आदेश में कहा:
- ₹42,872 के बिल को रद्द किया जाए.
- अक्टूबर 2019 का बिल औसत खपत के आधार पर लिया जाए.
- उपभोक्ता को सेवा से वंचित न किया जाए.
- मानसिक क्षति के एवज में ₹10,000 मुआवजा दिया जाए.
क्या कहता है यह मामला?
यह मामला न सिर्फ एक उपभोक्ता की जीत है. बल्कि यह दर्शाता है कि बिजली कंपनियों की मनमानी और लापरवाही के खिलाफ कानूनी रास्ता अपनाकर न्याय पाया जा सकता है. यह फैसला उन हजारों उपभोक्ताओं के लिए मार्गदर्शक है जो गलत बिलों से परेशान होकर भी चुप रहते हैं.