AC Stabilizer Necessary: देशभर में एक बार फिर भीषण गर्मी ने दस्तक दे दी है. उत्तर भारत से लेकर दक्षिण के कई राज्यों तक तापमान 40 डिग्री के पार पहुंच चुका है. ऐसे में घर या ऑफिस में कूलिंग के लिए एयर कंडीशनर (AC) की मांग लगातार बढ़ रही है.
लोग ऑनलाइन और ऑफलाइन मार्केट में नए AC खरीदने का मन बना रहे हैं. लेकिन इस दौरान एक सवाल हर ग्राहक के मन में आता है — क्या AC के साथ वोल्टेज स्टेबलाइजर (Voltage Stabilizer) लेना जरूरी है?
यह सवाल इसलिए भी अहम हो जाता है. क्योंकि AC विक्रेता ग्राहक को स्टेबलाइजर खरीदने के लिए मजबूर करने लगते हैं और उसकी कीमत भी ₹5000 से ₹6000 के बीच होती है.
दुकानदार क्यों देते हैं स्टेबलाइजर लेने की सलाह?
अक्सर जब आप किसी दुकान पर नया AC खरीदते हैं, तो विक्रेता आपको तुरंत वोल्टेज स्टेबलाइजर लेने की सलाह देता है. वो यह तर्क देता है कि अगर वोल्टेज ऊपर-नीचे हुआ तो आपका AC खराब हो सकता है.
इस बात में कुछ हद तक सच्चाई जरूर है. क्योंकि वोल्टेज फ्लक्चुएशन (Voltage Fluctuation) की वजह से कई बार इलेक्ट्रॉनिक उपकरण जल जाते हैं या उनकी कार्यक्षमता कम हो जाती है.
लेकिन क्या हर स्थिति में स्टेबलाइजर जरूरी है? इसका जवाब है – यह आपके इलाके में बिजली की स्थिरता पर निर्भर करता है.
वोल्टास और दूसरी कंपनियों की सलाह क्या कहती है?
वोल्टास (Voltas) जैसी जानी-मानी AC निर्माता कंपनी अपनी वेबसाइट पर खुद यह साफ कर चुकी है कि अगर आपके इलाके में वोल्टेज बार-बार ऊपर-नीचे होता है तो स्टेबलाइजर लगाना अनिवार्य हो जाता है.
हालांकि कंपनी यह भी मानती है कि अब बहुत से नए AC मॉडल में बिल्ट-इन वोल्टेज प्रोटेक्शन दिया जा रहा है. इसका मतलब है कि कुछ हद तक ये AC वोल्टेज के उतार-चढ़ाव को खुद ही संभाल सकते हैं.
लेकिन अगर बिजली की स्थिति बहुत खराब हो, जैसे–
- बार-बार लाइट कट होना
- कम वोल्टेज या हाई वोल्टेज रहना
- पुराने ट्रांसफॉर्मर या वायरिंग सिस्टम
तो इन परिस्थितियों में बिल्ट-इन सिस्टम भी फेल हो सकता है. ऐसे में स्टेबलाइजर लगाना समझदारी मानी जाती है.
इन्वर्टर AC और नॉन-इन्वर्टर AC में अंतर क्या है?
अब सवाल आता है कि क्या इन्वर्टर AC में स्टेबलाइजर की जरूरत नहीं होती? जवाब थोड़ा तकनीकी है। लेकिन आसान भाषा में समझते हैं:
- नॉन-इन्वर्टर AC: ये AC लगातार एक ही कूलिंग कैपेसिटी पर चलते हैं. यानी 1 टन का AC सिर्फ 1 टन की ही क्षमता से कूल करता है. इनकी ऑपरेटिंग वोल्टेज रेंज सीमित होती है. अगर वोल्टेज इसमें ऊपर या नीचे गया तो AC जल भी सकता है.
- इन्वर्टर AC: इनमें वेरिएबल स्पीड कंप्रेसर होता है, जो जरूरत के अनुसार 0.8 टन से 1 टन या 1.5 टन तक खुद को एडजस्ट कर सकता है. ये थोड़े वोल्टेज फ्लक्चुएशन को झेलने में सक्षम होते हैं, लेकिन इनकी भी एक सीमा होती है.
यानी इन्वर्टर AC थोड़े सुरक्षित हैं. लेकिन बिजली की स्थिति खराब हो तो इन्हें भी नुकसान हो सकता है.
एक्सपर्ट्स क्या कहते हैं?
बिजली और कूलिंग टेक्नोलॉजी के जानकारों की मानें तो अगर आपके इलाके में वोल्टेज फ्लक्चुएशन बहुत कम है और आपके AC में स्टेबलाइजर-फ्री ऑपरेशन का फीचर है, तो आप बिना स्टेबलाइजर के भी चला सकते हैं.
लेकिन जहां वोल्टेज बार-बार गिरता-बढ़ता है. वहां एक्सपर्ट्स का सुझाव है कि बेहतर सुरक्षा के लिए स्टेबलाइजर जरूर लगाया जाए. इससे:
- AC की उम्र बढ़ती है
- खराबी के चांस कम हो जाते हैं
- मेंटेनेंस खर्च घटता है
- बिजली की खपत भी बैलेंस रहती है
क्या स्टेबलाइजर सिर्फ मार्केटिंग ट्रिक है?
कुछ हद तक हां. आजकल दुकानदारों को AC बेचने के साथ-साथ एक्सेसरीज़ बेचने पर भी अच्छा मुनाफा मिलता है. ऐसे में वो हर ग्राहक को स्टेबलाइजर लेने का सुझाव देते हैं. भले ही ग्राहक का एरिया वोल्टेज के मामले में स्थिर हो. इसलिए आपको अपनी जरूरत के अनुसार फैसला लेना चाहिए, न कि दुकानदार के कहने पर ही भरोसा कर लेना चाहिए.
कौन-सा स्टेबलाइजर लें और क्या ध्यान रखें?
अगर आप स्टेबलाइजर खरीदने का मन बना चुके हैं, तो ये बातें ध्यान रखें:
- AC की टन कैपेसिटी के अनुसार ही स्टेबलाइजर लें
- मिनिमम और मैक्सिमम इनपुट वोल्टेज रेंज जरूर देखें
- ब्रांडेड कंपनियों (V-Guard, Everest, Microtek) का ही स्टेबलाइजर लें
- ओवरलोड प्रोटेक्शन फीचर हो तो बेहतर है
- कम से कम 3 साल की वारंटी जरूर लें