हरियाणा की इस सुरंग में छुपा है खजाना? लाहौर तक जाती हैं इसकी सुरंगें? Haryana Heritage Site

Haryana Heritage Site: हरियाणा के रोहतक जिले के महम कस्बे में स्थित ‘शाहजहां की बावड़ी’ एक ऐसी ऐतिहासिक धरोहर है, जो अपने स्थापत्य, जल प्रबंधन प्रणाली और रहस्यमयी सुरंगों के कारण जानी जाती है. स्थानीय लोग इसे ‘चोरों की बावड़ी’ के नाम से जानते हैं. क्योंकि इसके साथ जुड़ी चोरी और गायब होने की कहानियां वर्षों से सुनी जा रही हैं.

मुगलकालीन स्थापत्य का अद्भुत नमूना

शाहजहां की बावड़ी का निर्माण मुगल सम्राट शाहजहां के दरबारी सैदू कलाल ने 1658-59 ईस्वी में करवाया था. यह संरचना ईंटों और कंकर पत्थरों से बनी हुई है और इसमें 101 सीढ़ियां हैं, जो तीन हिस्सों में विभाजित होकर जलाशय तक पहुंचती हैं. यह उस दौर की प्रगतिशील जल संरचना प्रणाली का शानदार उदाहरण है.

जल संकट से निपटने के लिए हुआ था निर्माण

इस बावड़ी का निर्माण क्षेत्र में कम वर्षा और सूखे की समस्या को देखते हुए किया गया था. इसका उद्देश्य था कि स्थानीय निवासियों और यात्रियों को पानी की सुविधा उपलब्ध कराई जा सके. यह बावड़ी कभी गांव की जीवनरेखा मानी जाती थी.

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यात्रियों के ठहरने की भी थी व्यवस्था

बावड़ी के दोनों ओर बने कमरों और गलियारों का उपयोग यात्रियों के विश्राम स्थल के रूप में होता था. यह स्थान व्यापार मार्गों पर आने-जाने वाले राहगीरों के लिए विश्राम का प्रमुख केंद्र हुआ करता था.

‘ज्ञानी’ चोर और छुपे खजाने की कहानी

इस बावड़ी से जुड़ी एक प्रसिद्ध लोककथा है ज्ञानी नामक चोर की, जो अपना चुराया हुआ खजाना इसी बावड़ी में छुपाता था और फिर रहस्यमयी सुरंगों के ज़रिये गायब हो जाता था. इसी वजह से इसे ‘चोरों की बावड़ी’ कहा जाने लगा.

क्या लाहौर तक जाती थी सुरंग?

लोककथाओं के अनुसार, इस बावड़ी से निकलने वाली सुरंगें दिल्ली, हिसार और यहां तक कि लाहौर तक जाती थीं. हालांकि, इन दावों का कोई ऐतिहासिक प्रमाण मौजूद नहीं है. लेकिन इन कहानियों ने इस स्थान को और भी रहस्यमयी बना दिया है.

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बारात गई लेकिन लौटकर नहीं आई!

एक और चौंकाने वाली कहानी यह है कि एक बारात इन सुरंगों से होते हुए दिल्ली जाने निकली थी. लेकिन वह कभी वापस नहीं लौटी. इसके बाद अंग्रेजों ने इन सुरंगों को सील करवा दिया था. यह कथा स्थानीय लोगों के बीच आज भी रहस्य और डर का विषय बनी हुई है.

वर्तमान में बदहाली का शिकार

इतिहास और रहस्य से भरपूर यह बावड़ी आज सरकारी उपेक्षा की शिकार है. इसका पानी अब पीने योग्य नहीं है, और संरचना का बड़ा हिस्सा क्षतिग्रस्त हो चुका है. जो कभी विकसित जल प्रणाली और शिल्पकला का नमूना था. वह अब धीरे-धीरे नष्ट होता जा रहा है.

पर्यटकों और इतिहासप्रेमियों के लिए अब भी आकर्षण

हालांकि इस बावड़ी की स्थिति दयनीय है. फिर भी यह स्थान आज भी पर्यटकों, शोधकर्ताओं और इतिहास प्रेमियों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है. यदि सरकार और प्रशासन द्वारा इसका संरक्षण किया जाए, तो यह हरियाणा पर्यटन का प्रमुख हिस्सा बन सकता है.

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