इस देश में शराब पीने पर है कड़ी सजा, कोड़ो से पिटाई और चौथी बार फांसी! Law For Alcohol Drinking

Law For Alcohol Drinking: शराब को स्वास्थ्य के लिए हानिकारक माना जाता है और इसी कारण कई देशों में इसके सेवन, बिक्री और निर्माण पर प्रतिबंध लगाया गया है. भारत के कुछ राज्यों सहित कुछ देशों में शराब पर कानूनी रूप से सख्त नियंत्रण है.

भारत के कुछ राज्यों में भी लागू है शराबबंदी

भारत में भी बिहार, गुजरात और नागालैंड जैसे राज्यों में शराब पर पूरी तरह प्रतिबंध है. इन राज्यों में शराब बेचने या पीने पर भारी जुर्माना और जेल की सजा का प्रावधान है.

एक देश जहां शराब पीने पर मिल सकती है फांसी

दुनिया में एक ऐसा देश भी है जहां शराब पीना न केवल गैरकानूनी है. बल्कि इसके लिए फांसी की सजा तक दी जा सकती है. यह देश है ईरान, जो अपने इस्लामिक कानूनों के लिए जाना जाता है.

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ईरान में शराब पर पूरी तरह से प्रतिबंध

ईरान में शराब पीना, बनाना, ले जाना और बेचना पूरी तरह से अवैध है. यह प्रतिबंध शरीयत कानूनों के तहत लागू किया गया है, जो इस्लामी मूल्यों के आधार पर चलता है.

फिर भी नहीं रुक रही शराब तस्करी

कड़े कानूनों के बावजूद, ईरान में शराब की तस्करी और गैरकानूनी निर्माण के मामले सामने आते रहते हैं. कई लोग विदेशों से अवैध रूप से शराब मंगाते हैं. वहीं कुछ युवा गुप्त रूप से शराब बनाकर इसका सेवन भी करते हैं.

शराब पीने पर मिलती है 80 कोड़े की सजा

यदि कोई व्यक्ति पहली बार शराब पीते हुए पकड़ा जाता है, तो उसे 80 कोड़े मारने की सजा दी जाती है. यह सजा सार्वजनिक रूप से भी दी जा सकती है, जिससे लोगों में भय बना रहे.

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बार-बार पकड़े जाने पर बढ़ती है सजा

यदि कोई व्यक्ति तीन बार शराब पीने के आरोप में गिरफ्तार होता है और उसे कोड़ों की सजा मिल चुकी है, तो चौथी बार पर उसे फांसी की सजा भी दी जा सकती है. यह ईरान के शरीयत कानूनों का हिस्सा है.

सजा के डर से अस्पताल तक जाने से कतराते हैं लोग

कई बार लोग जहरीली शराब के सेवन से बीमार पड़ जाते हैं. लेकिन सजा के डर से अस्पताल नहीं जाते. इससे कई जानें भी जा चुकी हैं. यह स्थिति सरकार की सख्ती और डर के माहौल को दर्शाती है.

ईरान का कानून कितना प्रभावी और मानवीय?

जहां एक ओर सरकार कानून का पालन और धार्मिक व्यवस्था को सख्ती से लागू करने की कोशिश करती है. वहीं मानवाधिकार संगठनों ने इसे अत्यधिक कठोर और अमानवीय बताया है. विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसे कानून सामाजिक जागरूकता और सुधार के बजाय डर और दमन को बढ़ावा देते हैं.

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