हाइवे की हालत खराब हुई तो नही होगी टोल वसूली, हाईकोर्ट के आदेश पर SC ने लगाई रोक Toll Tax New Rule

Toll Tax New Rule: सड़कें चाहे जितनी खराब हों अब भी टोल टैक्स देना पड़ेगा — सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट के उस आदेश पर रोक लगा दी है जिसमें खराब सड़क पर टोल वसूली को अनुचित बताया गया था. राष्ट्रीय राजमार्ग 44 (NH-44) पर लखनपुर और बन्न टोल प्लाजा से जुड़े इस मामले में अब तक यात्रियों को बड़ी राहत मिलती नजर आ रही थी. लेकिन सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश के बाद अब स्थिति बदल गई है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एनएचएआई मौजूदा नियमों के अनुसार 75 प्रतिशत की दर से टोल वसूल सकता है.

क्या था हाई कोर्ट का आदेश?

इस पूरे मामले की शुरुआत फरवरी 2025 में हुई जब जम्मू-कश्मीर और लद्दाख हाई कोर्ट ने एक जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई करते हुए टोल में 80 प्रतिशत की कटौती का आदेश दिया था. हाई कोर्ट का कहना था कि जब तक दिल्ली-अमृतसर-कटरा एक्सप्रेसवे का निर्माण पूरा नहीं हो जाता तब तक एनएच-44 पर टोल वसूली में भारी कटौती की जाए.

कोर्ट ने यह भी कहा था कि खस्ताहाल सड़कों पर टोल वसूलना अनुचित सेवा के सिद्धांत का उल्लंघन है क्योंकि टोल शुल्क का उद्देश्य यात्रियों को बेहतर सड़क सुविधा देना है. जब सड़कों की हालत ही खराब है तो यात्रियों से पूरा टोल लेना गलत होगा.

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लखनपुर-उधमपुर खंड की स्थिति बेहद खराब

याचिका के अनुसार लखनपुर से उधमपुर तक का एनएच-44 खंड 2021 से निर्माणाधीन है और लगभग 70 प्रतिशत सड़क अधूरी है. गड्ढों डायवर्जन और धूल-मिट्टी के कारण वाहन चालकों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है. इससे न सिर्फ यात्रा का समय 3-4 घंटे बढ़ गया है बल्कि वाहन भी जल्दी खराब हो रहे हैं.

हाई कोर्ट ने टोल व्यवस्था में सुधार के भी दिए थे निर्देश

हाई कोर्ट ने अपने आदेश में सिर्फ टोल कटौती तक सीमित न रहते हुए. कई अहम निर्देश भी दिए थे:

  • टोल प्लाजा के बीच कम से कम 60 किलोमीटर की दूरी होनी चाहिए.
  • टोल कर्मचारियों का पुलिस वेरिफिकेशन जरूरी है.
  • वैष्णो देवी यात्रियों से अनुचित टोल वसूली पर रोक लगाई जाए.
  • कोर्ट ने केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के उस बयान का भी हवाला दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि खराब सड़कों पर टोल वसूली का कोई औचित्य नहीं है.

एनएचएआई ने सुप्रीम कोर्ट में लगाई थी याचिका

राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (NHAI) ने हाई कोर्ट के आदेश को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी. एनएचएआई की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अदालत में कहा कि हाई कोर्ट का आदेश नियमों के खिलाफ है. उन्होंने यह भी बताया कि एनएच-44 पर नियम 4(9) के तहत पहले ही टोल में 25% की कटौती की जा चुकी है और टोल 75% दर पर वसूला जा रहा है.

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सुप्रीम कोर्ट का आदेश

15 अप्रैल 2025 को जस्टिस अभय एस. ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की पीठ ने हाई कोर्ट के आदेश पर अंतरिम रोक लगा दी. अदालत ने साफ कहा कि “फिलहाल इस आदेश पर रोक रहेगी” और एनएचएआई को 75% टोल वसूली की अनुमति दी जाती है. इस मामले की अगली सुनवाई की तारीख 19 मई 2025 तय की गई है.

याचिकाकर्ता की आपत्तियां और मांगें

यह जनहित याचिका सुगंधा साहनी नामक महिला द्वारा दायर की गई थी. उन्होंने कई गंभीर मुद्दों को उजागर किया:

  • टोल वसूली नियम 2008 के नियम 3 के अनुसार केवल पूरी तरह निर्मित सड़क पर ही टोल वसूला जा सकता है.
  • सरोरे और बन्न टोल प्लाजा के बीच की दूरी केवल 47 किलोमीटर है. जो न्यूनतम दूरी के नियम का उल्लंघन है.
  • निर्माण कार्य के चलते वाहन चालकों को ज्यादा ईंधन खर्च समय की बर्बादी और सड़क हादसों का सामना करना पड़ रहा है.
  • उन्होंने ये भी कहा कि यह टोल वसूली यात्रियों के मौलिक अधिकारों का हनन है.

क्या कहती हैं सरकार और कानून की गाइडलाइंस?

भारत सरकार ने राष्ट्रीय राजमार्ग शुल्क नियम 2008 में यह स्पष्ट किया है कि टोल उसी मार्ग पर वसूला जाएगा जो पूरी तरह तैयार और उपयोग के योग्य हो. हालांकि मरम्मत कार्य के दौरान टोल में 25% तक की कटौती करने का प्रावधान है जिसे एनएचएआई पहले से लागू कर रहा है.

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सरकार की ओर से यह भी कहा गया कि अगर हर निर्माणाधीन मार्ग पर टोल बंद किया गया तो प्रोजेक्ट की फंडिंग और मेंटेनेंस प्रभावित होगी.

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