खानदानी प्रॉपर्टी पर कितना देना पड़ता है टैक्स, जाने टैक्स का पूरा हिसाब किताब Property Tax Rules

Property Tax Rules: अगर आपको बाप-दादा से विरासत में कोई प्रॉपर्टी (Property) मिली है और आप उसे बेचने की सोच रहे हैं, तो यह जानना जरूरी है कि इस पर भी टैक्स का प्रावधान होता है। भारत के टैक्स कानूनों के अनुसार, विरासत में मिली संपत्ति बेचने पर जो लाभ (Profit) होता है, उस पर पूंजीगत लाभ कर (Capital Gains Tax) लगाया जाता है। इसे भी सामान्य खरीदी गई संपत्ति की तरह टैक्स के दायरे में माना जाता है।

प्रॉपर्टी कितने समय तक रखी इससे तय होता है टैक्स का प्रकार

विरासत में मिली संपत्ति पर टैक्स की गणना इस आधार पर होती है कि:

  • अगर संपत्ति को बेचने से पहले 24 महीने से अधिक समय तक रखा गया है, तो इसे दीर्घकालिक पूंजीगत संपत्ति (Long Term Capital Asset) माना जाएगा।
  • यदि संपत्ति 24 महीने से कम समय तक रखी गई है, तो इसे अल्पकालिक पूंजीगत संपत्ति (Short Term Capital Asset) माना जाएगा।

दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ (LTCG) पर कम टैक्स दर लगती है और कुछ छूटें भी उपलब्ध होती हैं।

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कैसे होती है पूंजीगत लाभ की गणना ?

मान लीजिए आपको विरासत में एक प्रॉपर्टी मिली है, जिसमें:

  • आपका और सह-उत्तराधिकारी का हिस्सा 1/14वां है।
  • साथ ही अन्य उत्तराधिकारियों से भी 6/14वां हिस्सा मिला है।

पूंजीगत लाभ की गणना इस आधार पर की जाएगी:

  • आपके हिस्से के लिए प्रॉपर्टी के मूल मालिक (जैसे दादा/पिता) द्वारा रखे जाने की अवधि को गिना जाएगा।
  • इसका मतलब, जितने समय से वह प्रॉपर्टी आपके पूर्वजों के पास थी, उसे जोड़कर देखा जाएगा।

अधिग्रहण की लागत और बिक्री मूल्य में फर्क से तय होगा लाभ

जब आप विरासत में मिली संपत्ति बेचते हैं, तो पूंजीगत लाभ इस प्रकार तय होता है:

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बिक्री मूल्य – (अधिग्रहण लागत + सुधार लागत + बिक्री पर खर्च) = पूंजीगत लाभ

यहां,

  • अधिग्रहण लागत का मतलब वह कीमत है जो आपके पूर्वजों ने संपत्ति खरीदते समय चुकाई थी।
  • अगर प्रॉपर्टी 1 अप्रैल 2001 से पहले खरीदी गई थी, तो आप 1 अप्रैल 2001 का बाजार मूल्य भी ले सकते हैं।

दीर्घकालिक पूंजीगत लाभ पर कितना टैक्स लगेगा ?

अगर संपत्ति दीर्घकालिक मानी जाती है, तो:

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  • 20% की दर से LTCG टैक्स लगाया जाएगा।
  • इसके साथ सरचार्ज और सेस भी जोड़ा जाएगा।

इसलिए कुल मिलाकर, बिक्री से हुए लाभ पर आपको तय दर से टैक्स चुकाना पड़ेगा।

छूट का भी मिल सकता है लाभ

अगर आप चाहें तो कुछ विशेष प्रावधानों के तहत टैक्स से छूट भी पा सकते हैं:

  • सेक्शन 54 के तहत: यदि आप बेचने के बाद उस रकम से नई आवासीय संपत्ति खरीदते हैं तो टैक्स से छूट मिल सकती है।
  • सेक्शन 54EC के तहत: यदि आप लाभ की राशि को निश्चित बांड्स में निवेश करते हैं (जैसे NHAI या REC बांड्स), तो भी टैक्स से छूट पा सकते हैं।

हालांकि, इन लाभों को पाने के लिए कुछ शर्तें पूरी करनी जरूरी होती हैं।

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सह-उत्तराधिकारियों से प्राप्त हिस्से के लिए क्या नियम हैं ?

अगर आपने अन्य कानूनी उत्तराधिकारियों से प्रॉपर्टी का हिस्सा खरीदा है, तो:

  • अधिग्रहण की तारीख वह मानी जाएगी जब आपने उनसे यह हिस्सा खरीदा था।
  • उस हिस्से के लिए जो रकम आपने दी है, वही अधिग्रहण लागत मानी जाएगी।
  • अगर इस हिस्से को भी 24 महीने से ज्यादा रखा है, तो उसे दीर्घकालिक माना जाएगा और LTCG के नियम लागू होंगे।

टैक्स भरने से पहले किन बातों का रखें ध्यान ?

  • विरासत में मिली संपत्ति को बेचने से पहले उसकी मूल खरीद की तारीख और लागत का सटीक पता करें।
  • संपत्ति के सुधार कार्यों (Renovation) पर खर्च हुए पैसे का भी दस्तावेजी रिकॉर्ड रखें।
  • अगर प्रॉपर्टी 1 अप्रैल 2001 से पहले खरीदी गई थी, तो उस तारीख का बाजार मूल्य जान लें।
  • सभी जरूरी दस्तावेज जैसे खरीद के कागज, उत्तराधिकार प्रमाण पत्र, बिक्री एग्रीमेंट आदि सुरक्षित रखें।
  • छूट पाने के लिए समय सीमा के भीतर निवेश करें और सभी शर्तों को पूरा करें।

सही जानकारी से बच सकते हैं भारी टैक्स बोझ से

विरासत में मिली संपत्ति बेचना भावनात्मक रूप से कठिन हो सकता है, लेकिन कर नियमों को समझकर आप अपने वित्तीय दायित्वों को सही तरीके से निभा सकते हैं।

  • समय रहते सही दस्तावेज एकत्र करें।
  • पूंजीगत लाभ की सटीक गणना करें।
  • टैक्स छूट के विकल्पों पर विचार करें।
  • और यदि जरूरत हो, तो किसी टैक्स सलाहकार से भी मार्गदर्शन लें।

याद रखें, सही योजना और जानकारी से आप विरासत में मिली संपत्ति पर टैक्स का प्रभाव काफी हद तक कम कर सकते हैं।

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