बिना बिजली चलने वाले फ्रिज को देख सब हैरान, 13 घंटे तक रहेगी फ्रीज की कूलिंग Refrigerator

Refrigerator: इंदौर के मृदुल जैन, मिथरान लढ़ानिया और ध्रुव चौधरी ये तीनों छात्र केवल 12वीं कक्षा में पढ़ते हैं. लेकिन इन्होंने जो कर दिखाया है वो किसी वैज्ञानिक से कम नहीं. इन तीनों के माता-पिता डॉक्टर हैं और जब बच्चों ने देखा कि दूरदराज के इलाकों में वैक्सीन और दवाएं सुरक्षित पहुंचाना कितना मुश्किल काम है, तो उन्होंने इसे चुनौती मानते हुए एक समाधान निकालने का फैसला किया.

‘थर्मावॉल्ट’ बिना बिजली का फ्रिज

तीनों छात्रों ने मिलकर ‘थर्मावॉल्ट’ नाम का एक पोर्टेबल, केमिकल-बेस्ड रेफ्रिजरेटर बनाया है. जो बिना एक यूनिट बिजली के 13 घंटे तक अंदर का तापमान माइनस 4 डिग्री सेल्सियस तक बनाए रख सकता है. यह इनोवेशन सिर्फ एक प्रोजेक्ट नहीं बल्कि ग्रामीण स्वास्थ्य सेवाओं के लिए एक वरदान साबित हो सकता है.

कैसे काम करता है थर्मावॉल्ट?

थर्मावॉल्ट का फ्रिज कोई आम इलेक्ट्रिक फ्रिज नहीं है. यह खास केमिकल रिएक्शन पर आधारित है जिसमें पानी, अमोनियम क्लोराइड और बेरियम हाइड्रॉक्साइड का प्रयोग किया जाता है. इनका मिश्रण एक ठंडी प्रतिक्रिया (endothermic reaction) उत्पन्न करता है. जिससे अंदर का तापमान तेजी से नीचे चला जाता है.

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इसके अंदर की कॉपर लेयर और ग्लास फाइबर इंसुलेशन इसे ठंडा बनाए रखने में मदद करते हैं. इसकी क्षमता 12 लीटर है और यह पूरी तरह पोर्टेबल है.

क्यों है ये इनोवेशन बेहद खास?

भारत के कई ग्रामीण इलाके आज भी बिजली की कमी और बेहतर परिवहन की सुविधाओं से जूझ रहे हैं. खासकर जब बात टीकाकरण जैसे अभियान की आती है, तो वैक्सीन को सुरक्षित तापमान में रखना बहुत जरूरी होता है.

अभी तक बर्फ और थर्माकोल का इस्तेमाल होता था, जो केवल 3-4 घंटे तक ही टिक पाता है. लेकिन थर्मावॉल्ट 13 घंटे तक ठंडा वातावरण देने में सक्षम है. वो भी बिना किसी बिजली या बैटरी के. इससे दूर-दराज के प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तक ठंडी दवा पहुंचाना आसान हो जाएगा.

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‘द अर्थ प्राइज’ में एशिया की टॉप टीम

इस इनोवेशन को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पहचान मिली है. इसे प्रतिष्ठित ‘The Earth Prize’ प्रतियोगिता में शामिल किया गया है. जहां ये टीम एशिया की टॉप टीम बनी है. इस प्रतियोगिता में दुनिया भर से हजारों स्कूलों के छात्र हिस्सा लेते हैं और उसमें भारत के एक छोटे शहर इंदौर से तीन छात्रों का टॉप पर आना गर्व की बात है.

नवंबर 2024 से शुरू हुआ था प्रोजेक्ट

मृदुल, मिथरान और ध्रुव ने नवंबर 2024 में इस प्रोजेक्ट पर काम शुरू किया. पहले समस्या की स्टडी की, फिर संभावित हल खोजा और उसके बाद एक-एक कर प्रयोग कर प्रोटोटाइप तैयार किया. आज उनके पास एक मजबूत, टिकाऊ और इकोफ्रेंडली मॉडल मौजूद है. जिसे और भी आगे बढ़ाया जा सकता है.

छोटे शहर से निकला बड़ा आइडिया

इंदौर जैसे टियर-2 शहर से निकलकर ग्लोबल इनोवेशन प्लेटफॉर्म पर पहुंचना ही अपने आप में बड़ी उपलब्धि है. लेकिन इस इनोवेशन की खास बात यह है कि यह सिर्फ एक प्रयोग नहीं. बल्कि एक ऐसा समाधान है जो जमीनी हकीकत से जुड़ी बड़ी समस्या को हल कर सकता है.

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पर्यावरण के लिए भी बेहतर विकल्प

थर्मावॉल्ट में इस्तेमाल होने वाले केमिकल्स और निर्माण सामग्री पर्यावरण के अनुकूल (Eco-friendly) हैं. इसमें किसी भी प्रकार की गैस या बिजली का उपयोग नहीं होता, जिससे यह सस्टेनेबल डिवाइस बन जाता है. यह उन क्षेत्रों में बहुत उपयोगी होगा जहां ग्रीन एनर्जी सॉल्यूशंस की सख्त जरूरत है.

सरकार और स्वास्थ्य मंत्रालय की नजर में

अब यह इनोवेशन स्वास्थ्य मंत्रालय और स्टार्टअप इंडिया जैसे प्लेटफॉर्म्स की नजर में भी आ गया है. उम्मीद है कि सरकार इस प्रोजेक्ट को बड़े पैमाने पर अपनाएगी और ग्रामीण क्षेत्रों में इसके उत्पादन को बढ़ावा देगी.

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