दूसरों के सामने क्यों नहीं करनी चाहिए बेटे की तारीफ, आचार्य चाणक्य ने बताई बड़ी वजह Chanakya Niti

Chanakya Niti: आचार्य चाणक्य, प्राचीन भारत के महान राजनीतिज्ञ, अर्थशास्त्री और विचारक थे. उनका लिखा ग्रंथ “चाणक्य नीति” आज भी लोगों के जीवन को दिशा देने में मदद करता है. उनकी नीतियों में न केवल राजनीति, बल्कि व्यक्तिगत, पारिवारिक और सामाजिक जीवन से जुड़ी गहरी बातें शामिल हैं.

क्यों नहीं करनी चाहिए पुत्र की सार्वजनिक प्रशंसा?

चाणक्य के अनुसार, एक पिता को अपने बेटे की खुले मंच पर तारीफ नहीं करनी चाहिए. भले ही पुत्र गुणी, बुद्धिमान और योग्य हो, लेकिन उसकी सार्वजनिक प्रशंसा कई समस्याओं को जन्म दे सकती है, जो आगे चलकर परिवार में अशांति और समाज में असंतुलन का कारण बन सकती है.

प्रशंसा से उपज सकती है ईर्ष्या और घरेलू तनाव

अगर पिता अपने बेटे की सार्वजनिक रूप से बार-बार तारीफ करता है, तो भाई, रिश्तेदार या अन्य परिवार के सदस्य खुद को नजरअंदाज महसूस कर सकते हैं. इससे ईर्ष्या, तनाव और मनमुटाव की स्थिति बनती है, जो धीरे-धीरे पारिवारिक संबंधों को नुकसान पहुंचा सकती है.

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अधिक प्रशंसा से बेटे में आ सकता है घमंड

चाणक्य मानते हैं कि अगर किसी को बार-बार समाज में सराहा जाए, तो उसमें अहंकार पनप सकता है. खासतौर पर अगर बेटा किशोर या युवा हो, तो उसे लग सकता है कि वह सबसे श्रेष्ठ है. यह भावना उसे अनुशासनहीन और आत्ममुग्ध बना सकती है.

गुणवान व्यक्ति की तारीफ करें, लेकिन गोपनीय रूप से

चाणक्य सलाह देते हैं कि गुणवान व्यक्ति की सराहना करनी चाहिए, लेकिन उसे सार्वजनिक नहीं बनाना चाहिए. प्रशंसा अगर गोपनीय रूप से की जाए, तो उसका सकारात्मक असर पड़ता है, और वह व्यक्ति और भी प्रेरित होता है. वहीं खुली प्रशंसा उसे नकारात्मक तत्वों की नजरों में भी ला सकती है.

सार्वजनिक तारीफ से जुड़ी खतरे की संभावना

चाणक्य के अनुसार अगर कोई व्यक्ति समाज में बहुत प्रशंसा प्राप्त करता है, तो इर्ष्यालु या षड्यंत्रकारी लोग उसका शत्रु बन सकते हैं. इससे व्यक्ति को सामाजिक और मानसिक रूप से नुकसान झेलना पड़ सकता है.

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परिवार में संतुलन बनाए रखने के लिए जरूरी है विवेक

चाणक्य की नीति इस बात पर जोर देती है कि परिवार और समाज में संतुलन बनाए रखने के लिए संयम और समझदारी जरूरी है. तारीफ एक मजबूत साधन है, लेकिन इसका सही समय, स्थान और तरीका होना चाहिए.

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