CBSE Board Rules: केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) ने एक बड़ा निर्णय लिया है, जिसका असर देशभर के लाखों स्टूडेंट्स पर पड़ने वाला है। बोर्ड ने कहा है कि जो छात्र जेईई, नीट जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी के लिए कोचिंग संस्थानों में पढ़ाई करते हैं और स्कूल की नियमित कक्षाओं में उपस्थिति नहीं दर्ज कराते, उन्हें 12वीं बोर्ड परीक्षा में बैठने की अनुमति नहीं दी जाएगी। इस फैसले का सबसे बड़ा असर बिहार, दिल्ली, कोटा और अन्य राज्यों पर पड़ने वाला है, जहां हजारों छात्र बोर्ड परीक्षा के नाम पर कोचिंग क्लासेज में पढ़ाई कर रहे हैं।
कैसे सामने आया मामला सीबीएसई ने किया दो बार निरीक्षण
सीबीएसई ने बिहार, दिल्ली, राजस्थान के कोटा समेत देश के कई हिस्सों में दो बार निरीक्षण अभियान चलाया। इस दौरान बोर्ड ने स्कूलों में वीडियो रिकॉर्डिंग के जरिए छात्रों की उपस्थिति की स्थिति को परखा।
- निरीक्षण में यह सामने आया कि कई स्कूल कोचिंग संस्थानों से मिलीभगत कर छात्रों को बिना उपस्थिति के बोर्ड परीक्षा में बैठने की सुविधा दे रहे हैं।
- कई छात्र 10वीं के बाद बिहार के सरकारी या सहायता प्राप्त स्कूलों में नामांकन करवा लेते हैं और फिर देश के किसी भी कोने में कोचिंग क्लासेस अटेंड करते हैं।
सीबीएसई ने इसे शिक्षा के मूल उद्देश्यों के खिलाफ बताया है।
डमी स्टूडेंट्स की समस्या से बढ़ रही है शिक्षा की गुणवत्ता में गिरावट
डमी स्टूडेंट्स यानी वे छात्र जो केवल नाम के लिए स्कूल में नामांकित रहते हैं लेकिन कक्षाओं में उपस्थित नहीं होते, शिक्षा व्यवस्था की एक बड़ी समस्या बन चुके हैं।
- ये छात्र केवल बोर्ड परीक्षा देने के लिए स्कूलों का सहारा लेते हैं।
- इससे न केवल उनकी बुनियादी शिक्षा प्रभावित होती है, बल्कि स्कूल की शैक्षणिक गुणवत्ता भी प्रभावित होती है।
- लंबे समय से सीबीएसई इस प्रवृत्ति को रोकने की कोशिश कर रहा था, जो अब जाकर कड़ा कदम उठाया गया है।
सीबीएसई की चेतावनी डमी छात्रों को मिलेगा एनआईओएस का विकल्प
सीबीएसई के वरिष्ठ अधिकारियों ने बताया कि जो छात्र स्कूल की नियमित कक्षाओं में उपस्थित नहीं रहते हैं, उन्हें अब राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (NIOS) के माध्यम से परीक्षा देने का विकल्प दिया जाएगा।
- ऐसे छात्रों को सीबीएसई की नियमित बोर्ड परीक्षा में शामिल नहीं होने दिया जाएगा।
- दोषी स्कूलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी, जिसमें उनकी मान्यता भी रद्द की जा सकती है।
यह फैसला स्कूली शिक्षा को गंभीरता से लेने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है।
बिहार में सबसे ज्यादा असर हजारों छात्र हैं प्रभावित
सीबीएसई के इस फैसले का सबसे बड़ा असर बिहार पर पड़ने की संभावना है।
- बिहार के हजारों छात्र 10वीं के बाद सरकारी या सहायता प्राप्त स्कूलों में नामांकन करवा लेते हैं।
- इसके बाद वे पटना, दिल्ली, कोटा जैसे बड़े कोचिंग हब में जाकर प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करते हैं।
- अब बिना नियमित उपस्थिति के वे सीबीएसई बोर्ड से परीक्षा नहीं दे पाएंगे।
यह बदलाव छात्रों को स्कूलों में पढ़ाई को गंभीरता से लेने के लिए मजबूर करेगा।
बिहार बोर्ड और अन्य राज्यों में भी डमी स्टूडेंट्स की समस्या
डमी स्टूडेंट्स की समस्या केवल सीबीएसई से जुड़ी नहीं है, बल्कि बिहार बोर्ड समेत अन्य राज्य बोर्डों में भी यह गंभीर चुनौती बन चुकी है।
- बिहार सरकार ने भी पिछले साल कक्षा में उपस्थिति सुनिश्चित करने के लिए कोचिंग संस्थानों के खिलाफ अभियान चलाया था।
- हालांकि इसका बहुत असर नहीं पड़ा, क्योंकि स्कूलों में बुनियादी सुविधाओं की कमी एक बड़ी बाधा बनी हुई है।
अब शिक्षा विभाग ने मॉनिटरिंग और रिपोर्टिंग को मजबूत करने पर ध्यान देना शुरू किया है।
शिक्षकों और स्कूलों की भूमिका पर भी उठ रहे हैं सवाल
पूर्व सांसद और बिहार माध्यमिक शिक्षक संघ के अध्यक्ष शत्रुघ्न प्रसाद ने कहा कि अब सरकारी स्कूलों में छात्रों और शिक्षकों दोनों की उपस्थिति पर सख्त निगरानी की जा रही है।
- स्कूलों को सही ढंग से चलाने के लिए जरूरी है कि वहां पर्याप्त शिक्षण संसाधन और सुविधाएं हों।
- कई स्कूलों में अभी लैब निर्माण जैसे बुनियादी काम भी अधूरे हैं।
- अगर स्कूलों में बुनियादी ढांचे को बेहतर किया जाए, तो छात्र भी नियमित रूप से स्कूल आना पसंद करेंगे।
शिक्षा विभाग का फोकस अब स्कूलों को बेहतर बनाने और छात्रों की उपस्थिति बढ़ाने पर है।
शिक्षा व्यवस्था को गंभीरता से लेने का समय
सीबीएसई का यह फैसला शिक्षा की गुणवत्ता सुधारने की दिशा में एक बड़ा कदम है।
- अब केवल परीक्षा पास करने के लिए स्कूल में नामांकन कराना काफी नहीं होगा।
- छात्रों को भी स्कूल में नियमित उपस्थिति के साथ पढ़ाई करनी होगी।
- स्कूलों और शिक्षकों की भी जिम्मेदारी बढ़ेगी कि वे छात्रों को पढ़ाई के प्रति प्रेरित करें।
अगर इस फैसले को पूरी सख्ती से लागू किया गया, तो यह भारतीय शिक्षा व्यवस्था में सकारात्मक बदलाव ला सकता है।